ऐसे व्यक्ति से दूसरे लोग ही नहीं भगवान भी खुश रहते हैं।

चाणक्य नीति में आचार्य ने मनुष्य के जीवन सही तरीके से जीने की बहुत सारी बातें लिखी है।

इस नीति में इंसानों के खाने-पीने, रहने, व्यवहार करने आदि तमाम बारे में सही दिशा दिखाई है।

इस नीति में ही एक शोक है। ये तु संवत्सरों पूर्वं नित्यं मौनेन भुज्जते। युगकोटिसहस्तं तु स्वर्गलोके महीयते।

इस श्लोक में चाणक्य ने सही तरीके से खाना खाने का उदाहरण के तौर पर बताया है।

उन्होंने लिखा है कि जो व्यक्ति पूरे वर्ष तक मौन रहकर चुपचाप भोजन करता है वह एक करोड़ वर्ष तक स्वर्ग में आदर्श सम्मान प्राप्त करता है।

इससे और आसान भाषा में समझे तो जो इंसान अपने धर्म का पालन करते हुए सदाचार पूर्वक श्रम करता है और जो कुछ भी अर्जित करता है उससे संतुष्ट रहता है।

उससे सभी देवी देवता प्रसन्न रहते हैं, यानी उसे किसी प्रकार के कस्टों का मुख नहीं देखना पड़ता।

उसी का सभी जगह समान होता है, यहां मन का अर्थ प्राप्त करने की स्वीकृति है चुप रहना नहीं